भोपाल । सेवानिवृत्त अफसरों के पुर्नवास के मामले में राज्य शासन के नक्शेकदम पर अब प्रदेश की विधानसभा का सचिवालय भी चल रहा है। शायद यही वजह है कि विधानसभा सचिवालय का कामकाज अब बुजुर्गों के हाथों में है। यहां पर सचिवालय में सेवानिवृत्त हो चुके पीएस से लेकर अनुभाग अधिकारी तक जमे हुए हैं। इसकी वजह से जहां अधीनस्थों को उच्च पदों पर काम करने का मौका नहीं मिल पा रहा है तो, वहीं युवाओं को नौकरी का अवसर भी नहीं मिल रहा है। फिलहाल यहां पर आधा अफसर सेवानिवृत्त अफसर जमे हुए हैं। कुछ अधिकारी नियमों की लेकिन-परंतु की व्याख्या करते हुए रिटायरमेंट के कई साल बाद भी येन-केन प्रकारेण सरकारी सुविधाएं और रौब की धमक बनाए रखने के लिए कुर्सी पर जमे हुए हैं। विधानसभा सचिवालय में पिछले कुछ दशकों से सरकारी नियम-कानूनों के बंधन की अपने हिसाब से व्याख्या करते हुए अधिकारी-कर्मचारी नौकरी में आते हैं और फिर रिटायरमेंट के बाद किसी न किसी रूप में जमे रहते हैं। इस तरह के जोड़ तोड़ की शुरुआत 1990 के दशक से हुई, उस समय प्रदेश में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह की सरकार थी। बाद में कुछ कर्मचारियों की नियुक्तियों को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ था। जिसके बाद दो अधिकारियों सत्यनारायण शर्मा व कमलकांत शर्मा की गिरफ्तारी तक हुई थी। इसके बाद कुछ और नियुक्तियों पर सवाल उठे जिनमें से कुछ निरस्त हो गईं तो कुछ नियुक्तियां हो भी गईं। हाल ही में एक नियुक्ति ऐसी की गई, जिसमें उसे नौकरी देने के लिए आवेदक की पात्रता की शर्तों को उसके दायरे तक सीमित रखने का सूचना जारी की गई।
विधानसभा सचिवालय में नियुक्तियां तो संदेह के दायरे में आईं हीं लेकिन कुछ विशिष्ट लोगों की आंखों के तारे बनकर अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद सेवा में बनाए रखने के लिए भी जोड़-तोड़ होती रही है। अभी मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रमुख सचिव अवधेश प्रताप सिंह से लेकर सचिव शिशिर चौबे, अवर सचिव रमेशचंद्र रूपला व मुकेश मिश्रा, अनुभाग अधिकारी रमेश सागर व एसपी बुंदेला रिटायरमेंट के बाद भी सेवावृद्धि, संविदा नियुक्तियों पर काम कर रहे हैं। सचिव चौबे की उम्र 65 साल हो जाने के बाद उन्हें परामर्शी के रूप में रखे जाने और संविदा नियुक्ति की सेवाशर्तों के आदेश के बाद संशोधित आदेश से फिर संविदा नियुक्ति दे दी गई। अवर सचिव रमेशचंद्र रूपला रिटायरमेंट के बाद भी संविदा नियुक्ति पर पदस्थ हैं।